Thursday, September 12, 2013

मैं हूँ उन्ही में से
जिन्हें लोग सतातें हैं,
मैं हूँ उन्ही में से
जिन्हें लोग रुलाते हैं,
मैं हूँ उन्ही में से
जिन्हें लोग ठुकराते हैं,
मैं हूँ उन्ही में से
जिन्हें लोग असफल मानते हैं,
मैं हूँ उन्ही में से
जिनके साथ लोग विश्वासघात करते हैं,
मैं हूँ उन्ही में से
जिनसे लोग फायेदा उठाते हैं,
मैं हूँ उन्ही में से
जिनमे लोग सीरत नही सूरत तलाश्तें हैं,
मैं हूँ उन्ही में से
जिनकी किस्मत कभी जगती नही,
मैं हूँ उन्ही में से
जिनकी आँखें इक सच्चे साथी को तरसती हैं,……
लेकिन…….
मैं हूँ उन्ही में से जो सबको सहायक हो,
मैं हूँ उन्ही में से
जो सबको मुस्कुरातें हों,
मैं हूँ उन्ही में से,
जो सभी को अपनातें हैं,
मैं हूँ उन्ही में से जो सभी को सफल बनातें हैं,
मैं हूँ उन्ही में से ,
जो अविश्वास को भी विश्वासी बनातें हैं,
मैं हूँ उन्ही में से,
जो हर तकलीफ में मुस्कुरातें हैं,
मैं हूँ उन्ही में से,
जो किस्मत नही मेहनत जगातें हैं
मैं हूँ उन्ही में से जो साथ निबाहना जानते हैं……
हाँ मैं हूँ….वो मैं हूँ.
हुरैन फ़य्याज़

Sunday, July 29, 2012

Jab usne mujhse dahej ki raqam puchhi......

शादियाँ करने वाली एक ब्रोकर से मेरी सहेली ने मेरे लिए रिश्ता ढूंढने की बात कही, क्यूंकि वह केवल अपने धर्म के लोगों के ही रिश्ते करवाती है तब उसने सिर्फ मैं देखूंगी कहकर हामी भर दी. आज वह मुझे मिली और  बोली तेरे लिए एक रिश्ता है. सुनकर मैं सिर्फ मुस्कुरा दी. मेरी मुस्कराहट को हाँ समझकर वह एकदम बोली पैसा कितना दोगे?  ये सुनते ही मुझे गुस्सा नहीं आया, उस लड़के पर तरस आने लगा जो मेरे दहेज़ की कमाई से अपना और अपने परिवार का पेट पालना चाहता है. बहरहाल कुछ देर बाद मैंने पूछा वो दहेज़ क्यूँ मांग रहा है? कमाई करने के लिए उसके हाथ पाँव नहीं है क्या? उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. भाषा की परेशानी होने की कारन मैंने सारी बात अपनी कुलीग्स के आने पर उन्हें बताई जो पहले से जानती थी कि दहेज़ के मांगने वालों को सिर्फ मैं गालियाँ दे सकती हूँ। उन सभी ने पूरी बात उन्हें बताई तब वह ताना देते हुए बोली तेरी बहिन की शादी बिना दहेज़ के हुई क्या? सुनकर मुझे उसके औरत होने पर शर्म आ रही थी।..मैंने कहा वो अपनी ज़िन्दगी में क्या फैसले लेती है ये उसकी अपनी मर्ज़ी है और खुद उसी की ज़िम्मेदारी है। वैसे भी उसके शोहर ने एक दाना भी अपने मुंह से नहीं माँगा और मुझे इस बात की बहुत ख़ुशी है कि उसके ससुराल वाले कतई लालची नहीं। सुनकर वह चुप हो गयी थी। अचानक मेरी सहेली ने मुझे बताया की वो लड़का 10 लाख रूपये मांग रहा है। तब वाकई मेरा गुस्सा चेहरे तक को लाल कर गया। मैंने कहा उस लड़के से कहना मैं शादी के लिए तैयार हूँ लेकिन शादी के बाद उसे मेरे घर आकर रहना पड़ेगा, उसे केवल घर में रहना है बहार कमाने भी मैं चली जाउंगी, और उसे दहेज़ में कुछ भी लाने की ज़रूरत नहीं। मेरे अन्दर इतनी हिम्मत है की मैं उसे पूरी ज़िन्दगी खिला पिला कर पाल सकती हूँ. और उससे कह देना चाहे तो अपने पुरे परिवार को भी साथ में ले आये। मेरे गुस्से को देखकर सब लोग खामोश हो गए थे उस ब्रोकर को देखकर में सोच रही थी कि खुद औरत होकर ये दूसरी औरत से दहेज़ मांग रही है तो भला मर्दों के नखरे क्यूँ नहीं बढ़ेंगे? और क्यूँ नहीं बढेगा उनका दहेज़ मांगने का हौंसला भी? तमतमाते चेहरे के साथ मैंने अपनी सहेली से कहा था कि मर्दों के इतने नखरे बढ़ने की वजह हम औरतें ही हैं जो उनके गलत काम में साथ देने का हौंसला भी बढाती हैं। क्यूंकि हम माँ बनकर ही अच्छे संस्कार नहीं दे पा रही हैं वरना किसी मर्द की क्या मजाल की हमारी ही कोख से जन्म लेकर, हमारी ही छाती का दूध पीकर ये मर्द हमारे ही मुंह पर दहेज़ के नाम पर हमारी ही कीमत लगायें? 

Tuesday, July 24, 2012

Aur uss bhai ki padhai adhuri hi reh gayi.....

अपने स्कूल के वक़्त जब भी मैंने इम्तिहान में कोई भी निबंध चुना या तो वो दहेज़ प्रथा या फिर प्रदुषण जैसे सामाजिक विषय हुआ करते थे. लेकिन कॉलम में अगर दहेज़ प्रथा है तो मेरा चुनाव हमेशा से दहेज़ प्रथा ही रहा है। क्यूँ ? ये मैं भी नहीं जानती. धीरे धीरे बड़ी होती गयी और इस दौरान कॉलेज ज्वाइन करने तक दहेज़ प्रथा एक मुसीबत, अन्धकार, घरों को उजाड़ने वाला परिवार को बिखेरने वाला एक नासूर बन चुका था. अखबारों में पढ़ पढ़कर, अपने रिश्तेदारों के मुंह से सुन सुनकर और अपने ही खानदान की बेटियों को वृद्ध होते देखती रही क्यूंकि कहीं न कहीं वे भी दहेज़ देने में सक्षम जो नहीं थीं। दहेज़ नहीं मिला तो बहु, बेटियों को ताने देना, जला देना, या फिर पति पत्नी के बीच मुटाव  पैदा कराना. इतना अत्याचार देखकर दहेज़ प्रथा मेरा नहीं मैं उसकी दुश्मन बन गयी. उस वक़्त एक कहावत अक्सर सुना करती थी, औरत ही औरत की दुश्मन होती है. इस वाक्य का अर्थ मुझे आज समझ आया है। जब मैं एक बेटे  की माँ को अपनी बहु से दहेज़ की मांग करते देखती व् सुनती हूँ तब समझ आता है की औरत ही औरत की दुशमन है। पहले तो मैं यही सोचती रही कि  ये दहेज़ नाम का नासूर केवल उत्तर भारत में ही बुरी तरह फैला है। जिसकी वजह लालच व् अशिक्षा को माना जा सकता है। लेकिन मेरा ये भ्रम जल्दी ही दूर हो गया जब मैं दक्षिण भारत पहुंची। वही दक्षिण भारत ( केरल राज्य ) जो पुरे भारत में हर साल शिक्षा के प्रतिशत में अव्वल नम्बर होने पर सरकार से अवार्ड पाता रहा है. और आज दहेज़ मांगने वालों का इतना दुस्साहस देखकर नही लगता की ये राज्ये शिक्षित है? यहाँ पर दहेज़ प्रथा की कुछ अलग व् अनोखी ही कहानी है। उत्तर भारत में दहेज़ के नाम पर सूई से लेकर कार तक देने की प्रथा है और यहाँ पर दहेज़ के नाम पर स्वर्ण दिया जाता है। गरीब पिता भी 50 तोले से ऊपर देने की भरपूर कोशिश करता है चाहे उसे जीवन भर क़र्ज़ में बिताना पड़े. वजह यहाँ पर लड़के वाले खुद अपने मुंह से दहेज़ बनाम स्वर्ण मांगते हैं। कोई 50 तोला, कोई 101, तो कोई 10 लाख तक. आप और हम यूँ कह सकते हैं कि जिस माता पिता का बेटा जितना ज्यादा पढ़ा लिखा या व्यापारी होगा वो अपने बेटे की उतनी ही ऊंची बोली लगाएगा. ताजुब ये है कि ये सब उन्ही कट्टरपंथियों की नाक के नीचे होता है जो सीना पीट पीट कर खुद को पक्का सुच्चा मुसलमान होने की घोषणा करते हैं  और दूसरों को भी जबरन इसके लिए मजबूर करते हैं। जबकि धर्म वास्तव में जो कहता है उसका प्रचार प्रसार दूर तक भी नहीं दिखाई देता। जैसाकि  हुक्म है उस खुदा का की कोई फायेदा नहीं तेरा मंदिर व् मस्जिद में दान करने का, जबकि बंदा मेरा और पडोसी तेरा भूख से बिलबिला रहा हो. कोई फायेदा नहीं तेरा ख्वाजा की मज़ार पर फूलों की चादर चढ़ाकर, जबकि मेरा बंदा सड़क पर नंगा घूम रहा हो, कोई फायेदा नहीं तेरा ईद, दिवाली खुशियाँ मनाकर जबकि तुने इन खुशियों को किसी गरीब से साझा न किया हो। ठीक उसी तरह अभिनेता सलमान खान का वो वाक्य किसी ने क्या खूब लिखा है कि मस्जिद के सामने से चप्पल चोरी नहीं होते जिसे ज़रूरत होती है वो उठाकर ले जाता है। क्यूंकि चोर व् डकेत अपनी माँ  की कोख़ से चोर व् डकेत बनकर पैदा नहीं हुए थे। ज़रूरत, भूख ,लाचारी और अपने बच्चों की तरसती आँखे किसी को भी चोर व् डकेत बन्ने पर मजबूर क्र सकती हैं। भला कौन चोर व् डकेत की ज़िन्दगी जीना चाहेगा? आप और हमने इन लोगों ऐसा बनने पर मजबूर किया है। रिश्वत मांग मांगकर इनको भी रिश्वत खोर बना बना दिया, महंगाई बढाकर इनके मुंह का लुक्मा छीन लिया और लाखों रूपए दहेज़ मांगकर एक बाप की कमर की झुका दी। और तो और एक भाई की पढाई अधूरी रह गयी क्यूंकि उसे अपने ही जैसे किसी दुसरे भाई का मुंह दहेज़ से भरने के लिए आज से कमाई करने जो जाना था।

Wednesday, February 9, 2011

ek nazar

zindagi jab bhi rulane lge ,
tum itna muskurao k gham bhi sharmane  lage.